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एक बात ऐसी कह डाली जो सौ बातों पर भारी थी. इनके तेवर ही कुछ ऐसे हैं कि यह अपने नजरिए से जिंदगी को जीते हैं और साथ ही इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि वो अपने अभिनय के साथ इंसाफ कर पाएं. तिग्मांशु धूलिया की फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के लिए इरफान को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है और इस मौके पर बिना चुके उन्होंने कह दिया कि जिस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है वो सच में उनके लिए हैरान कर देने वाली खबर है.
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हां, यह सच है कि जब किसी फिल्म को निर्देशित करते समय उसका एक आधार बना लिया जाता है तो उस फिल्म के सफल होने की ज्यादा उम्मीदें होती हैं, ऐसा इरफान खान का मानना है. ऐसा नहीं है कि उन्हें फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ में अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने पर नाराजगी है पर सच यह है कि वो इस पुरस्कार को एक अलग ही नजरिए के साथ देख रहे हैं. इरफान इस बात से सहमति रखते हैं कि पुरस्कार के बीज दर्शक ही बोते हैं और उन्हीं के कारण कोई भी फिल्म या अभिनेता पुरस्कार के योग्य बनते हैं पर साथ ही उनको यह विडंबना और विरोधाभास लगता है जब समाज और सिस्टम के विरोध में बनी फिल्मों को ही समाज राष्ट्रीय पुरस्कारों की मंजिल तक पहुंचाता है. जैसे समाज और सिस्टम के कारण ही पान सिंह तोमर जैसे लोग डकैत बनने पर मजबूर हुए और उसी समाज ने फिल्म बनने पर उन्हें सिर-माथे पर बिठाया. वास्तव में यह एक विडंबना और विरोधाभास भी है. फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने इस फिल्म में इसी विडंबना को दिखाया है.
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इरफान खान को पान सिंह तोमर जैसे किरदार काफी आकृष्ट करते हैं क्योंकि वो बगावती मिजाज के व्यक्ति और अभिनेता हैं. इरफान खान का कहना है कि वो हर दिन अपने लिए चुनौतियां पैदा करना चाहते हैं जिससे कि वो अभिनय के क्षेत्र में बेहतर से बेहतर कर सकें. वैसे सच यह है कि अभिनेता इरफान खान की फिल्मों को लेकर बनी विडंबना वाली बात ने हिन्दी सिनेमा के निर्देशकों को हिला दिया है जिस कारण यह कहना गलत नहीं होगा कि कभी-कभी एक बात सौ बातों पर भारी होती है.
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